रुद्र : भाग-५
कमरे में चारों ओर अंधेरा था। शाम होने के कारण पर्दों से छनकर बहुत ही कम रोशनी खिड़कियों से अंदर आ पा रही थी।कमरे में कुछ किताबों से भरी अलमारियाँ रखी हुई थीं। कमरे में स्टडी टेबल रखा हुआ था और उसके साथ एक कुर्सी थी। टेबल पर लैपटॉप था, जो की इस वक्त चल रहा था और कुर्सी पर आर्या बैठा उसी लैपटॉप में आज सुबह स्टेशन पर हुई घटना को देख रहा था, जिसकी सीडी कुछ देर पहले ही एक व्यक्ति आर्या को देकर गया था और देर से आने के लिए आर्या ने उसे एक झन्नाटेदार थप्पड़ मारा था।
अचानक ही आर्या की आँखें चौड़ी हो गई। उसके चेहरे पर गुस्से को साफ देखा जा सकता था। उसने अपने बाएँ हाथ से टेबल को कसकर पकड़ लिया। आर्या अचानक से खड़ा हुआ और एक जोरदार लात टेबल पर दे मारी। टेबल पलट गया और लैपटॉप कुछ दूरी पर जाकर गिर गया। लैपटॉप कुछ देर बंद-चालू हुआ और फिर पूरी तरह बंद हो गया। आर्या अभी भी अपनी जगह पर खड़ा गुस्से से आगबबूला हो रहा था।
"रुद्रssssss...." आर्या इतनी जोर से चीखा की खिड़कियाँ भी काँप उठी। आर्या की आँखों में खून उतर आया था। उसके चेहरे पर नफरत झलक रही थी। इतने साल बाद एक बार फिर अपने पुराने दुश्मन को देख वह बदले की भावना से तिलमिला उठा। उसने कुछ देर बाद खुद को शांत किया और कुर्सी पर बैठ गया। उसने जेब में से अपना फोन निकाला और किसी को फोन किया।
"बोलो आर्या। कुछ पता चला?" दूसरी ओर से उसी वृद्ध व्यक्ति जिसका नाम अधिराज था, उसकी सख्त आवाज आयी।
"पता चल गया है उस लड़के का। मैं कल सुबह खुद आपके पास आकर उसकी जानकारी आपको दूंगा।" आर्या ने थोड़ी शांत आवाज में कहा।
"हम्म...." दूसरी ओर से इतना कहकर संपर्क तोड़ दिया गया।
आर्या अब कुर्सी पर आराम से बैठा हुआ था। उसके चेहरे पर अब गुस्से की जगह एक कुटिलता पूर्ण मुस्कान थी।
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सभी हॉल में बैठे हुए थे। रुद्र के पिता भी अब वहीं पर थे। रुद्र के पिता जी लंबाई में रुद्र के दादा जी से थोड़े छोटे हैं, लेकिन कसरती शरीर के मालिक हैं। उनकी घनी दाढ़ी और रौबदार मूँछों में कुछ सफेद बाल भी थे जो उनकी उम्र को दर्शा रहे थे। उन्होंने गाढ़े नीले रंग का सूट और हाथ में कुछ अंगूठियाँ और सुनहरी घड़ी पहनी हुई थी।
कुछ देर तक रुद्र और बाकी सब ने इधर-उधर की बातें की। इस बीच कई बार रुद्र के दादाजी ने सब कुछ बताना चाहा, लेकिन रुद्र ने उन्हें हर बार इशारे से मना कर दिया।
अचानक से रुद्र के पिता उठे और रुद्र के बिल्कुल सामने आकर खड़े हो गए। उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "वैसे तुम कब से शुरू करने वाले हो काम पर जाना?"
इतना सुनते ही रुद्र और बाकी सब थोड़े विचलित हो गए। रुद्र बस सर झुकाकर चुपचाप खड़ा था। जब रुद्र ने कुछ जवाब नहीं दिया तब उन्होंने रहस्यमयी तरीके मुस्कुराते हुए कहा, "अरे भाई, मेरा मतलब है तुम अपनी एसीपी की ड्यूटी कब से जॉइन करने वाले हो?"
रुद्र ने झटके से सर ऊपर उठाया और अपने पिता की ओर देखा। बाकी सब भी आश्चर्य से उन दोनों को ही देख रहे थे।
"अ....आ....आपको कैसे पता?" रुद्र ने हिचकिचाते हुए कहा।
"बेटा मेरी भी थोड़ी बहुत पहुँच है। तुमने जिस दिन ट्रेनिंग पर जाने की बात कही उसी दिन मुझे सब पता चल गया था। क्योंकि ट्रेनिंग के समय तुम्हारे जो कोच थे, महेंद्र वर्मा, वो मेरे बचपन का दोस्त है। जब उसके पास इस साल के चुने गए कैडेट्स की लिस्ट पहुँची उसी वक्त उसने मुझे इस बारे में शुभकामनाएँ देने के लिए फोन कर दिया था। उस वक्त मुझे थोड़ा बुरा जरूर लगा था, लेकिन फिर मुझे लगा कि हम सब की खुशी भी तुम्हारी ही खुशी में है। इसलिए मैंने महेंद्र से कहा कि तुम्हे कभी भी हमारी दोस्ती के बारे में न बताए। आज मैं सच में बहुत खुश हुँ बेटा।" कहते हुए पुरुषोत्तम जी ने रुद्र को गले से लगा लिया।
सभी बहुत ज्यादा खुश हो गए। रुद्र के दादाजी उन दोनों के पास गए और पुरूषोत्तम जी की पीठ थपथपाई। पुरुषोत्तम जी ने अपने पिता का आशीर्वाद लिया। रुद्र के दोस्त भी काफी खुश हो गए।
"चलिये। आज पहली बार आपने कोई सही फैसला किया वह भी बिना पिताजी की डांट खाए।" अंजना जी ने पुरुषोत्तम जी को चिढ़ाते हुए कहा।
अंजना जी की बात सुनकर सभी ठहाके मारकर हँसने लगे। कुछ देर और सभी ने बातें की। अब धीरे-धीरे रात होने लगी थी। रुद्र के माता-पिता के काफी जोर देने के बाद अभय, विराज और विकास भी आज रात रुद्र के घर रुकने के लिए तैयार हो गए। रात के करीब आठ बजे के आसपास अंजना जी ने सही को अपने-अपने कमरों में जाकर कपड़े बदलकर खाने के लिए आने को कहा। रुद्र का कमरा हवेली की पहली मंजिल पर था। अभय और विकास रुद्र के बायीं ओर वाले कमरों में ठहरे थे और विराज निचली मंजिल पर था। अभय के माता-पिता और दादा-दादी का कमरा भी नीचे ही था। कुछ देर बाद सभी लोग नीचे आ गए। रुद्र ने सफेद रंग का टी-शर्ट और काले रंग का लोअर पहना हुआ था। अभय, विराज और विकास अपनी जैकेट्स उतारकर आ गए थे। मुरली काका ने सभी को खाने के लिए बैठने को कहा। डाइनिंग टेबल के एक छोर पर रुद्र के दादा जी बैठे हुए थे और एक पर दादी जी। रुद्र के माता-पिता, दादा जी की बायीं ओर बैठे हुए थे। रुद्र और अभय उनके दायीं ओर विराज और विकास ठीक उनके सामने बैठे हुए थे। मुरली काका ने सभी को खाना परोसा और दादा जी के पास जाकर खड़े हो गए। आज रुद्र के आने की खुशी में तरह-तरह के पकवान बने हुए थे। सभी ने जी भरकर खाना खाया और मुरली काका की खूब तारीफ की।
"वाह, आज का खाना तो लाजवाब था। सच में मुरली काका, आपके हाथों में जादू है।" पुरुषोत्तम जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
बाकी सारे भी उनकी बात से सहमत थे। खाना खाने के बाद सभी धीरे-धीरे सोने के लिए चले गए। मुरली काका का कमरा भी रसोई के पास ही था। वे भी सभी के जाने के बाद कुछ बचे हुए काम निपटा कर सोने चले गए।
रुद्र, अभय, विराज और विकास कुछ देर निचे गार्डन में टहलने के लिए आ गए। रात के समय फव्वारे की लाइट्स चालू थी। उस सफेद रंग की रोशनी में फव्वारा काफी सुंदर लग रहा था। गार्डन में जगह-जगह लाइट लगी हुई थी। मौसम भी काफी ज्यादा अच्छा था। ठंडी हवाएं चल रही थीं। कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद चारों पास में पड़ी बेंच पर आकर बैठ गए। अचानक ही रुद्र के फोन की घंटी बजी। रुद्र ने देखा तो कोई मैसेज आया था। उसे पढ़ने के बाद रुद्र के चेहरे पर प्रसन्नता साफ दिखाई दे रही थी।
"क्या हुआ भाई? किसका मैसेज है? काफी खुश लग रहा है तू।" विराज ने रुद्र को देखते हुए कहा।
"पुलिस हेडक्वार्टर से मेल आया है। कल सुबह १० बजे मुझे रिपोर्ट करना है।" रुद्र ने विराज की तरफ अपना फोन बढ़ाते हुए कहा।
"लो! मतलब कल से आपको भी सर कहकर बुलाना पड़ेगा।" विकास ने नकली अफसोस के साथ कहा।
"वही तो यार। लेकिन एक बात अच्छी है। इस बार हमारे प्यारे एसपी साहब भी हमारे ही साथ हैं।" अभय ने हँसते हुए कहा।
इस बात पर सभी जोर से हँसे।
"चलो, माँ को भी इस बारे में बताकर सोने चलते हैं। सुबह सैर पर चलेंगे। जल्दी उठना तुम सब।" रुद्र ने बेंच से उठते हुए कहा।
सभी अंदर जाकर अपने-अपने कमरों में सोने चले गए।
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सुबह के आठ बजे के आसपास जंगल की ओर जाने वाली सुनसान सड़क पर एक बड़ी-सी गाड़ी दौड़ी जा रही थी। गाड़ी के आगे वाली सीट पर ड्राइवर के साथ काले कपड़े पहना एक हट्टा-कट्टा आदमी बैठा हुआ था। उसके हाथ में बंदूक थी। पीछे वाली सीट पर उसके जैसे ही दो और बंदूकधारी बैठे थे और उनके बीच में बैठा था आर्या। आर्या की आँखों पर पट्टी बंधी हुई थी।
"ना जाने ये अधिराज साहब हमेशा ऐसे ही क्यों ले जाते हैं अपने ठिकाने पर। और कितनी देर लगाओगे। जल्दी गाड़ी चलाओ। " आर्या ने गुस्से से कहा।
"जी आर्या भाई। आपको तो पता है, बॉस को रिस्क लेना पसंद नहीं। इसलिए तो उनके कुछ गिने-चुने लोगों के अलावा उनके अड्डे के बारे में किसी को खबर नहीं है। और हमने भी कभी उनकी शक्ल नहीं देखी।" आगे बैठे आदमी ने कहा।
"हम्म।" आर्या ने संक्षिप्त उत्तर दिया।
कुछ देर बाद गाड़ी एक बड़े से घर के सामने आकर रुकी। कोई सोच भी नहीं सकता कि जंगली इलाके में इतने अंदर वीरान जगह पर भी कोई रहता होगा।
आर्या गाड़ी से उतरा और अपनी पट्टी खोली। आर्या आराम से चलते हुए गेट से होता हुआ घर के अंदर चला गया। रास्ते में जितने गार्ड्स थे, सभी ने उसके आगे ऐसे सर झुकाया मानों कोई राजकुमार आया हो।
अंदर जाकर आर्या सीढ़ियों से होता हुआ एक कमरे के आगे खड़ा हो गया। वहाँ खड़े दो गार्ड्स ने दरवाजा खोला। आर्या अंदर कमरे में चला गया। कमरे में घुप्प अंधेरा था। रोशनी के नाम पर एक छोटा-सा रोशनदान था। कोने में एक कुर्सी पर कोई बैठा हुआ था। उसका चेहरा बिल्कुल दिखाई नहीं दे रही थी।
"आओ आर्या।" उस व्यक्ति ने अपनी कड़क आवाज में कहा।
"नमस्ते अधिराज साहब। उस लड़के का नाम रुद्र रघुवंशी है।......"
आर्या ने धीरे-धीरे सारी बातें कह डाली। इतनी देर से अधिराज सिर्फ उसकी बातें सुन रहा था। आर्या वहीं चुपचाप खड़ा अधिराज के कुछ कहने का इंतजार करने लगा।
"ठीक है। तुम्हारी उस लड़के से क्या दुश्मनी है, उससे मुझे कोई सरोकार नहीं है। अभी वो हमारे लिए इतना बड़ा खतरा नहीं है। लेकिन अगर ऐसी वारदातें और बढ़ी तो हमारा डर लोगों के दिलों से निकल जाएगा। अभी के लिए अपनी बदले की आग को शांत रखकर बस उस लड़के चेतावनी दे दो। उसके बाद ऐसी कोई बात होती है, तो तुरंत उसे खत्म कर दो।" अधिराज ने आदेशात्मक लहजे में कहा।
"अ....लेकि.....न.....अ...ठीक है।" आर्या ने मन मारकर कहा।
इसके बाद आर्या वहाँ से निकल गया। आर्या इस बात से सहमत नहीं था, जो अभी अधिराज ने की। लेकिन आर्या कुछ कर नहीं सकता, बस उस दिन के इंतजार के जब रुद्र उसके हत्थे चढ़ेगा।
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रुद्र, अभय, विराज और विकास इस वक्त कमिश्नर ऑफिस में खड़े थे। आज रुद्र अपनी वर्दी में था। रुद्र की मजबूत भुजाएँ, चुस्त यूनिफार्म में और भी ज्यादा उभरी हुई दिख रही थीं। अपने सभी दोस्तों में रुद्र ही था, जो सबसे ज्यादा कसरत करता था।
"बहुत अच्छे रुद्र। ड्यूटी जॉइन करने से पहले ही तुमने काफी बहादुरी वाला काम किया है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि आर्या इन सब के बाद चुप बैठेगा। और उसके पास ऐसे भी बहुत लोग हैं, जो काफी ऊंची पदवी पर बैठे हुए हैं। लेकिन मुझे यकीन है, कि तुम और मेरे ये तीनों बहादुर सिपाही और हमरा ये डिपार्टमेंट मिलकर जल्द ही इस शहर को माफिया के राज से आजाद करवा देगा।" कमिश्नर खन्ना ने जोश के साथ कहा।
"जरूर सर। और जहाँ तक बात है, आर्या और उसके साथियों की, उन सभी को जल्द ही उनके कर्मों का फल मिल जाएगा।" रुद्र ने आत्मविश्वास से कहा।
"वैसे जब से सुबह हेडक्वार्टर के बाहर मीडिया वालों को तुम्हारे बारे में पता चला है, लगभग हर न्यूज़ चैनल पर तुम ही छाय हो।" कमिश्नर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा।
रुद्र ने इसपर कोई जवाब नहीं दिया, बस मुस्कुरा कर रह गया।
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"जैसा की आप सब जानते ही हैं। कल इस शहर के सबसे बड़े माफिया डॉन आर्या के खास आदमी शेरा की मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर गोली मारकर हत्या कर दी गयी। कल से ही लगभग पूरा शहर यही जानने के लिए बेताब है, की आखिर कौन है जिसने आर्या से टक्कर लेने की कोशिश की है। इस सवाल का जवाब हमारे रिपोर्टर शर्मा को आज ही मिला। जिसने शेरा की सरेआम हत्या की वो कोई और नहीं, बल्कि शहर के मशहूर उद्योगपति पुरुषोत्तम रघुवंशी के बेटे और इस शहर के नए एसीपी हैं..... एसीपी रुद्र रघुवंशी। आपको क्या लगता है, क्या ऐसे जांबाज पुलिस वाले हमें इस मुसीबत से बचा पाएँगे? क्या एक बार फिर पुलिस डिपार्टमेंट भरोसे के काबिल हो पाएगा? अपना जवाब हाँ या ना में टाइप करें और नीचे दिख रहे नंबर पर हमें भेजें। देखते रहिए न्यूज़ लगातार , संजय वर्मा के साथ। लौटेंगे एक छोटे से ब्रेक के बाद।"
टीवी पर न्यूज़ चैनल पर समाचार चल रहा था।
आर्या ने गुस्से में टीवी बंद कर दिया। वह अपने बेडरूम में बैठा था। पहले से ही वह गुस्से में था और अब ये पता चलने पर की रुद्र इस शहर का एसीपी बन गया है, आर्या का गुस्सा सातवें आसमान पर चला गया।
"छोडूंगा नहीं तुझे।" आर्या ने क्रोध से मुट्ठी भींचते हुए कहा और हाथ में जो रिमोट था उसे टीवी पर दे मारा।
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अब क्या होगा आर्या का अगला कदम? कैसे करेगा रुद्र आर्या के साम्राज्य का विनाश? जानने के लिए अगला भाग पढ़ें।
अमन मिश्रा
🙏
Shaba
05-Jul-2021 03:15 PM
बहुत ही रोमांचक भाग। हर भाग नए भाग के लिए उत्सुकता पैदा कर देता है। आपकी कलम एक नई उम्मीद जगाती है, अच्छा पढ़ने वालों के लिए। आशा है कि इसकी धार हर दिन के साथ पैनी होती जाए। शुभकामनाऍ॑
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